सतना/छतरपुर। कोरोना के वैश्विक संकट के दौरान उपस्थित परिस्थितियों की वजह से लोगों की जीवनशैली विशेष रूप से मानसिक सोच में काफी बदलाव आया है. यहां तक की लोगों के भीतर मानसिक विकार भी पैदा हो रहे हैं. हालांकि इससे पीछे सिर्फ कोविड-19 के बाद पैदा हुए हालातों को दोष देना उचित नहीं है. क्योंकि सामाजिक परिवेश में आए अप्रत्याशित बदलाव इसके अहम कारण है. ऐसी परिस्थितियों में पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास द्वारा मानसिक तनाव व बचाव के उपाय पर केंद्रित एक वेबिनार का आयोजन किया. जिसमें दिल्ली के प्रसिद्ध मनोविज्ञान चिकित्सक डॉ. नवीन ग्रोवर ने लोगों को अपने जीवन शैली में आ रहे बदलावों के बीच मानसिक मज़बूती के लिए अहम टिप्स दिए. कार्यक्रम का संचालन न्यास के अध्यक्ष डॉ. राकेश मिश्र ने किया. कार्यक्रम में रीवा, सीधी, सतना, पन्ना, छतरपुर, प्रयागराज, महोबा, बांदा, हमीरपुर समेत 17 जिलों के 1319 समाजसेवी व प्रबुद्धजन उपस्थित रहे.
लोगों के हर सवाल का डॉ. नवीन ग्रोवर ने दिया जवाब
कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए डॉ नवीन ग्रोवर ने कहा कि कोरोना हमारी जिंदगी में बदलाव लेकर आया है. यह अज्ञात वस्तु व स्थिति से डर जैसा है. हालांकि मनोविज्ञान भी इसे स्वीकार्य करता है, लेकिन मुझे लगता है कि दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले भारत के लोगों पर अज्ञात का डर कम है. क्योंकि भारत में हम परलौकिक आध्यात्मिक शक्ति पर अधिक विश्वास करते हैं. आस्था आज हमारे लिए ताकत बनकर सामने आई है. उन्होंने कहा कई जगहों पर घरेलू हिंसा के मामले बढ़ने की बातें सामने आई हैं, उसके पीछे की मूल वजह संयुक्त परिवार में नहीं रहने की आदत है. ऐसे में यह उचित समय है जब हम अपने मूल की ओर लौटें. मैंने जो अध्यययन किया उसके मुताबिक हमारी निराशा सहने की क्षमता कम हो रही है. हर चीज़ हमें पलक झपकते चाहिए. लोग नकारात्मकता को सिरे से खारिज कर रहे हैं. जबकि सकारात्मक सोच के साथ जीवन में नकारात्कता भावों को अपनाने की स्वीकार्यता भी बढ़ानी होगी. आज यदि बच्चे कोई नकारात्मक बात कर लें तो हम उसे समझने के बजाय उन्हें नज़रअंदाज करते हैं. इसे हम अपने व्यवहार में बदलाव लाकर ठीक कर सकते हैं. मसलन, हमारे स्वभाव कतार में एकदम आगे जाकर खड़े होने वाली सोच के बजाय अपनी बारी के इंतज़ार का धैर्य भी होना चाहिए. कुल मिलाकर विचार नहीं व्यवहार में बदलाव को प्राथमिकता देना चाहिए. तत्कालीन परिस्थितियों की बात करें तो सिर्फ कोविड-19 के बारे में सूचनाएं प्राप्त करने की प्रवृत्ति छोड़ें.
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कार्यक्रम में श्री नरेंद्र त्रिपाठी भाजपा जिलाअध्यक्ष सतना, योगेश ताम्रकार, मणिकांत माहेश्वरी, मोतीलाल गोयल, उत्तम बनर्जी, कामता पांडे, अभिनव त्रिपाठी रंजन, डोली शर्मा, नीता सोनी, कृष्णा पांडे, दीपक वर्मा, विनोद यादव, अनुराग गौतम, संजय सेन, मोतीलाल गोयल, उत्तम बनर्जी, नीता सोनी, जान्हवी भिपाठी, सीमा सिंह यादव, प्रोफेसर नीलम रिछारिया, सतीश शर्मा, प्रहलाद कुशवाहा, विजय त्रिवेदी, अनुराग गौतम, सुवेद रिछारिया (बंगलुरू) सचिन त्रिपाठी (शिकागो), अरविंद मिश्रा, प्रवीण गुप्ता, मंटू खरे, डॉ. मनीष सिंघल, ब्रजेश अग्रवाल, साहित्य मिश्रा, जेएन चतुर्वेदी, गजेंद्र सोनकिया,साकेत मिश्रा, राधे शुक्ला, पूप्पू गुप्ता जी,विनीत रावत, प्रवीन नायक, श्रीराम रिछारिया, अनिल खरे, संतोष शर्मा, अनिल रावत, मोहित मिश्रा, प्रवीण दुबे, डॉ. अनुराग पांडे, राकेश शुक्ला, विवेक स्वरुप (प्रयागराज), पुष्पेंद्र सिंह (प्रयागराज), संकठा द्वेदी, शंकर्षाचार्य महाराज (सागर) न्यास की सचिव श्रीमती आशा रावत, श्रीमती मालती मिश्रा, रेखा अवस्थी, डॉ. रचना मिश्रा एवं श्रीमती प्रमिला मिश्रा ने भाग लेते हुए सभी का आभार व्यक्त किया.
आदि की विशेष उपस्थिति रही. प्रस्तुत है पंडित गणेश प्रसाद मिश्रा सेवा न्यास के संयोजक डॉ. राकेश मिश्र के साथ डॉ नवीन ग्रोवर की बातचीत का प्रमुख अंश
- सवाल (नन्दन मिश्रा) : छात्रों में शैक्षणिक भविष्य को लेकर चिंता व असमंजस हैं. क्या करना चाहिए?
डॉ.नवीन ग्रोवर : भविष्य के बजाय अभी पर जीते हुए सरकार के निर्देशों के अनुसार खुद को तैयार रखना चाहिए. सरकारें लोगों के हितों का ध्यान रखते हुए निर्णय लेती हैं. अपनी योग्यता बढ़ाते रहें. दिनचर्या को सामान्य बनाए रखें.
- सवाल (रवींद्र मिश्र) : छत से कूदने, बिजली के तार को छूने जैसे विचार आते हैं इसका क्या उपचार है?
डॉ.नवीन ग्रोवर : यह एनजाइजी जैसी बीमारी का लक्षण भी हो सकता है. उन्हें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े किसी डॉक्टर से मिलना चाहिए. टेली कंसल्टेशन तक लेना चाहिए. उनका ख्याल भी रखें.
- सवाल (श्री राम रिछारिया) : युवाओं में मानसिक तनाव की वजह से नशा करने की आदत बढ़ जाती है, जिससे युवाओं का कैरियर बरबाद हो जाता है, क्या सावधानी बरतना चाहिए?
डॉ.नवीन ग्रोवर : इसके लिए जो आदमी नशे की तरफ जा रहा है, उसे खुद निर्णय करना होगा. हालांकि यह लोगों को बुरा लग सकता है. क्योंकि कोई दवा नहीं है, जो दूसरे व्यक्ति के चाह लेने से छूट जाए. पीड़ित व्यक्ति को खुद समझना होगा कि क्या वह नशे के परिणाम को समझ पा रहा है. जब आदमी के भीतर नशा छोड़ने का मन बना लिया तो फिर किसी दवा की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी. हां दवाओं से थोड़ा मदद मिलती है. लेकिन यदि दो सप्ताह तक वह स्वयं को मर्यादित व अनुशासित कर ले तो स्थितियां बदल सकती हैं.
- सवाल (संजय शर्मा) : जो लोग बाहर से आ रहे हैं वह सिर्फ नकारात्मक बातें करते हैं, व नशे की वस्तुएं तलाशते हैं, उनके साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए?
डॉ.नवीन ग्रोवर : एक बात तो तय है कि स्थितियां मुश्किल भरी हैं. सहायता लेने और सहायता देने वाले दोनों व्यक्तियों को मेज के एक तरफ होना है. उसे आपको अपने साथ लाना है. उसे तत्काल एकतरफा समाधान न बताएं, इससे वह आपसे दूर हो जाएगा. उसके साथ समाधान निकालना है. इसे कहते हैं दूसरों के विचारों को सम्मान देना. रूटीन बनाए रखते हैं, नशे से बचे रहना है यह संयुक्त रूप से तय करें.
वेबिनार का सफल संचालन पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास के अध्यक्ष डॉ. राकेश मिश्र ने किया.
- निखिल देशकर : आज हर व्यक्ति कोरोना पर ही विचार करता नजर आता है, ये करें वो न करें, ऐसे में हर आदमी डॉक्टर बन गया है ऐसे में क्या करना चाहिए?
डॉ.नवीन ग्रोवर : मुझे लगता है कि उन्होंने अपने सवाल के जरिए ही जवाब भी दे दिया है. व्हाट्सएप, इंटरनेट पर बहुत अधिक निर्भर न रहें. अधिकृत सूचनाओं पर निर्भर रहें. आप देखें सरकार जागरुकता फैलाने के लिए सूचनाएं दे रही है, उसे फॉलो करें.
सवाल (प्रदीप खरे) : मन में लगता है ये करेंगे तो ये हो जाएगा. सैनेटाइजर का उपयोग करें तो ये नुकसान होगा?
डॉ.नवीन ग्रोवर : मैंने जो अपने बचाव के लिए समझा है, तो मुझे लगता है कि बहुत अधिक सैनेटाइजर का उपयोग न करते हुए साबुन से हाथ धोना चाहिए. नाक और हाथ को न मिलाएं. डॉक्टर भी साबुन का अधिक प्रयोग करते हैं.मानसिक तनाव व रोग के ईलाज में एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं। जैसे उसकी आदत लग जाना आदि? इस पर क्या कहना है आपका?
- राजीव शुक्ला : बेटी को सिरदर्द रहता है, लोग कहते हैं मानसिक तनाव की वजह है?
डॉ.नवीन ग्रोवर : उन्हें मेडिसिन व न्यूरोलॉजी के डॉक्टर से मिलना चाहिए. डॉक्टर की उपाधि से अधिक वह कितना समझदार है, जिन्हें क्लीनिकल समझ हो, उसे मिलना चाहिए. यदि साइकोलॉजिस्ट से पूछेंगे तो हम उसके मानसिक तनाव को ही वजह बताएंगे. एक 20 साल की लड़की अपने सामाजिक परिवेश तथा निजी महात्वाकांक्षाओं से भी मानसिक तनाव में आ सकती है.
- कामता पांडे : कोविड-19 से जुड़ी सूचनाओं की बाढ़ आ गई है. साधारण सर्दी-जुकाम पर भी लोग दहशत में आ जाते हैं?
डॉ.नवीन ग्रोवर : इसमें कोई दो मत नहीं कि कोरोना के अलावा दूसरी बीमारियां भी मौजूद हैं. सिर्फ इस समय कोरोना ही होगा ऐसा नहीं है. साधारण सर्दी, जुकाम, बुखार भी तो आ सकता है. लेकिन चूंकि परिस्थितियां अलग हैं तो सरकार, डॉक्टरों के निर्देशों का पालन करना चाहिए. हां लेकिन उसकी वजह से अपने व्यवहार में असंतुलन और आक्रामकता न लाएं.
- सुसाइड की तरफ युवा बहुत अधिक जा रहा है, क्या ऐसे युवाओं के व्यवहार से मेंटल अलर्ट या व्यवहारगत बदलाव को हम महसूस कर सकते हैं?
डॉ.नवीन ग्रोवर : भूख नहीं लगना, नींद पूरी नहीं होना. सबको अलविदा कहने जैसी बातें करना. पुरानी बातों में ही अक्सर खोए रहना, अपने बहुत पूराने टीचर को पत्र लिखना, चिड़चिड़ापन. अकेलेपन की ओर बढ़ना, नशे की तरफ़ जाना. यह सारे लक्षण भी हो सकते हैं. लेकिन यही सर्वमान्य लक्षण हैं ऐसा नहीं है. आप एक हद तक ही किसी व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं.
डॉ. नवीन ग्रोवर, प्रसिद्ध मनोचिकित्सक वेबिनार में लोगों के सवालों का जवाब देते हुए
- प्रवीण नायक : सोशल मीडिया पर युवा अधिक निर्भर रहते हैं, कई बार यह लोगों में तनाव पैदा करता है.
डॉ.नवीन ग्रोवर : ‘स्क्रीन एडिक्शन’ से बचना होगा. आज आप देखें कि छोटे बच्चे को मां खाना खिलाने के लिए मोबाइल दे देती है. वो नहीं चाहते कि 2-3 घंटे भी उनका बच्चा रोए. जबकि हमें थोड़ा सहज होना होगा. जिंदगी में अपने पॉजिटिव चीजों को पहचानें. मोबाइल से थोड़ा दूर करें.
- पुष्पेंद्र मिश्रा : मानसिक सेहत को मजबूत करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली एलोपैथी दवाओं का कितना बुरा असर होता है?
डॉ.नवीन ग्रोवर : मैं इतना ही कहूंगा कि जोबी दवाएं लेते हैं आपको पता होना चाहिए कि उसके अंदर क्या हैं. एक पुड़िया दवा यूं ही न लें. बहुत स्ट्रीम वाले नुस्खे नहीं करने चाहिए. व्हाट्सप पर मिलने वाले नुस्खे न अपनाएं.