
नई दिल्ली से प्रशांत झा की रिपोर्ट। सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न कंपनी की ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन ने हालही में लद्दाख में देश की पहली भू-तापीय क्षेत्र विकास परियोजना शुरू करने की घोषणा की है। इसमें पृथ्वी के गर्भ की ऊष्मा यानी जमीन के अंदर की गर्मी का उपयोग स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में किया जाएगा। कंपनी ने एक बयान में कहा, “इसे औपचारिक रूप देने के लिए ओएनजीसी ने छह फरवरी को केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख और लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, लेह के साथ एमओयू किया है।
ओएनजीसी की इस परियोजना से भारत भूतापीय बिजली के मामले में वैश्विक मानचित्र पर आ जाएगा। भू-तपीय ऊर्जा स्वच्छ है और यह 24 घंटे, 365 दिन उपलब्ध है। भू-तापीय बिजली संयंत्रों के पास औसत उपलब्धता 90 प्रतिशत और उससे भी अधिक है। जबकि कोयला आधारित संयंत्रों के मामले में यह करीब 75 प्रतिशत है। ओएनजीसी के बयान के अनुसार, ‘‘भू-तापीय संसाधनों के विकास से लद्दाख में खेती में क्रांति आ सकती है। फिलहाल इस क्षेत्र में पूरे साल ताजी सब्जी, फल की आपूर्ति बाहर से होती है। प्रत्यक्ष ऊष्मा ऊर्जा अनुप्रयोग इसे लद्दाख के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक बनाते हैं।’’
तीन चरणों के बाद मूर्त रूप लेगी परियोजना
कंपनी ने तीन चरणों में इसके विकास की योजना बनायी है। पहले चरण में 500 मीटर की गहराई तक कुओं की खुदाई की जाएगी। यह खोज-सह-उत्पादन अभियान होगा। इसमें पायलट आधार पर एक मेगावाट तक की क्षमता के संयंत्र स्थापित किये जाएंगे। दूसरे चरण में भू-तापीय क्षेत्र के लिये और गहराई में खोज की जाएगी। इसके तहत अनुकूलतम संख्या में कुओं की खुदाई की जाएगी और उच्च क्षमता के संयंत्र लगाये जाएंगे तथा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जाएगी। तीसरे चरण में भू-तापीय संयंत्र का वाणिज्यिक विकास किया जाएगा। औसतन एक भूतापीय ऊर्जा परियोजना को विकसित करने में पांच से छह वर्ष का समय लगता है।

जीवाश्म ईंधन और पन बिजली आधारित विशाल परियोजनाएं से पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव ने ऊर्जा के नए विकल्पों की तलाश को प्रासंगिक बना दिया है। सौर ऊर्जा, हाईड्रोजन ऊर्जा से लेकर वेस्ट टू एनर्जी पर दुनिया भर में शोध और निवेश किया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में ऊर्जा क्षेत्र में कार्य करने वाले वैज्ञानिकों के लिए जमीन के भीतर की उष्मा के रूप में छिपी ऊर्जा आकर्षण का केंद्र रही है। भू-तपीय ऊर्जा, ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत है जो पृथ्वी के निचले भाग कोर में है। ऊर्जा का यह स्रोत स्वच्छ, नवीकरणीय, टिकाऊ, कार्बन उत्सर्जन मुक्त और पर्यावरण अनुकूल है। यह एकमात्र नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है जो सातों दिन 24 घंटे उपलब्ध है। न तो इसके भंडारण की जरूरत नहीं है और न ही मौसम या दिन-रात का इस पर कोई फर्क पड़ता है। भूतापीय ऊर्जा के विकास के लिए संभावनायुक्त क्षेत्रों की पहचान और फिर उत्खनन का प्रारंभिक चरण ही सबसे अधिक निवेश साध्य होता है। एक बार सक्षम भूगर्भीय उष्मा की पहचान होने के बाद उसके अनुप्रयोग को बढ़या जाता है। भूतापीय ऊर्जा के विकास के लिए संभावनायुक्त भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान और फिर उत्खनन का प्रारंभिक चरण ही सबसे अधिक निवेश साध्य होता है। एक बार सक्षम भूगर्भीय उष्मा की पहचान होने के बाद उस पर परियोजनाएं मूर्त रूप ले पाएंगी। पर्यावरणीय स्वीकृति से पहले ही क्षेत्र विशेष की भूगर्भीय, भूतापीय,भूरासायनिक विकास का अध्ययन अनिवार्य होता है। भारत में भूतापीय ऊर्जा के विकास को लेकर पिछले कुछ वर्षों में नीतिगत स्तर पर भी जिस प्रकार की सक्रियता देखने को मिल रही है, वह एक अच्छा संकेत है।